नई दिल्ली. देश के विभिन्न राज्यों में डिप्टी सीएम नियुक्ति करने की प्रथा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि डिप्टी सीएम का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है.
दरअसल इस जनहित याचिका में कहा गया था कि संविधान में कोई प्रविधान नहीं होने के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों ने उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की है. संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का प्रविधान है.
14 राज्यों में 26 उपमुख्यमंत्री
बता दें कि देशभर के 14 राज्यों में इस समय 26 डिप्टी सीएम नियुक्त हैं. अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का राज्य के नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है. न ही कथित उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति होने पर राज्य की जनता का कोई अतिरिक्त कल्याण होता है.
इसमें यह भी कहा गया था कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति से बड़े पैमाने पर जनता में भ्रम पैदा होता है और राजनीतिक दलों द्वारा काल्पनिक पोर्टफोलियो बनाकर गलत और अवैध उदाहरण स्थापित किए जा रहे हैं, क्योंकि उपमुख्यमंत्रियों के बारे में कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं, हालांकि उन्हें मुख्यमंत्रियों के बराबर दिखाया जाता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी ये दलीलें दरकिनार करते हुए इस जनहित याचिका को खारिज कर दिया.