Jagannath Rath Yatra 2022 हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ का रथउत्सव शुरू होता है। इस साल रथयात्रा का आरंभ 1 जुलाई से हो रहा है। पुरी में जगन्नाथ मंदिर से तीन सजे-धजे रथ निकलते हैं।, हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं।
ओडिशा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल धूमधाम के साथ रथयात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ मंदिर से तीन सजेधजे रथ रवाना होते हैं। इनमें सबसे आगे बलराज जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ प्रभु का रथ होता है। जानिए रथयात्रा से जुड़ी खास 10 बड़ी बातें- (10 special things)
इसलिए नाम पड़ा था रथ यात्रा-
भगवान के लिए ये रथ सिर्फ श्रीमंदिर के बढ़ई द्वारा ही बनाए जाते हैं। ये भोई सेवायत कहे जाते हैं। यह घटना हर साल दोहराई जाती है, इसलिए इसका नाम रथ यात्रा पड़ा।
जानिए रथयात्रा से जुड़ी खास 10 बड़ी बातें- (10 special things)
108 घड़ों के पानी से स्नान कराया जाता है-
भगवान की ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन कुंए के पानी से स्नान कराया जाता है वह साल में केवल एक बार ही खुलता है। भगवान जगन्नाथ को हमेशा स्नान में 108 घड़ों में पानी से स्नान कराया जाता है।
1. पुरी में रथयात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम व बहन सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।
2. बलराम के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं। जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘पद्म रथ’ या ‘दर्पदलन’ कहा जाता है, जो काले और लाल रंग का होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘नंदीघोष’ कहते हैं, जो कि लाल और पीला होता है।
3. सभी रथ नीम की लकड़ियों से तैयार किए जाते हैं। जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इसके लिए जगन्नाथ मंदिर में एक खास समिति का निर्माण किया जाता है।
4. रथ के निर्माण के लिे किसी भी प्रकार की कील, कांटे या अन्य धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
5. रथों के लिए काष्ठ चयन बसंत पंचमी से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है।
6. भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम जी का रथ 45 फीट और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
7. जब ये तीन रथ बनकर तैयार हो जाते हैं तब ‘छर पहनरा’ नाम का अनुष्ठान कराया जाता है। इसके लिए पुरी के गजपति राजा पालकी में आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं।
8. रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलरामजी और बहन सुभद्रा सात दिन विश्राम करते हैं।
9. गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।
10.आषाढ़ मास के दसवें दिन सभी रथ फिर से मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
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