Jagannath Rath Yatra 2023 हिन्दू ग्रंथों के अनुसार रथयात्रा से भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं. इस वजह से पुरी में जगन्नाथ मंदिर से 3 रथ रवाना होते हैं, इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथजी का रथ होता है. माना जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे नगर देखने की इच्छा जाहिर की तो वो उन्हें भाई बलभद्र के साथ रथ पर बैठाकर ये नगर दिखाने लाए थे. इस दौरान वो भगवान जगन्नाथ अपने मौसी के घर गुंडिचा भी पहुंचे और वहां पर सात दिन ठहरे थे.
हैरानी की बात ये है कि जब भी भगवान का रथ नगर भ्रमण के लिए निकलता है तो उसके पहिये एक मजार के सामने आकर रुक जाते हैं. यह बात सभी को हैरान करती है कि आखिर जगत के पालनहार का रथ एक मजार के सामने क्यों रुक जाता है. क्या है इसके पीछे की कहानी जानें यहां.
मजार पर रुकता है भगवान का रथ Jagannath Rath Yatra 2023
यात्रा के बारे में बताया जाता है इस रथ यात्रा के दौरान एक मजार पर भी भगवान का रथ रोका जाता है. यह मजार ग्रैंड रोड पर लगभग 200 मीटर आगे है और जैसे ही ये रथ वहां से गुजरता है तो दाहिनी ओर एक मजार है, जहां इसे रोका जाता है. मजार पर रुकता है भगवान का रथ
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क्यों रोकी जाती है मजार पर यात्रा
पौराणिक कथा के अनुसार, जहांगीर के वक्त एक सुबेदार ने ब्राह्मण विधवा महिला से शादी कर ली थी और उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम सालबेग था. मां हिंदू होने की वजह से सालबेग ने शुरुआत से ही भगवान जगन्नाथ पंथ के प्रति आस्था थी. सालबेग की भगवान जगन्नाथ के प्रति काफी भक्ति थी, लेकिन वो मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाते थे.
इस पौराणिक कथा में बताया जाता है कि सालबेग काफी दिन वृंदावन भी रहे और रथ यात्रा में शामिल होने ओडिशा आए तो बीमार पड़ गए. इसके बाद सालबेग ने भगवान को पूरे मन से याद किया और एक बार दर्शन की इच्छा जताई. इस पर भगवान जगन्नाथ खुश हुए और उनका रथ खुद ही सालबेग की कुटिया के सामने रुक गई. वहां भगवान ने सालबेग को पूजा की अनुमति दी. सालबेग को सम्मान देने के बाद ही भगवान जगन्नाथ का रथ आगे बढ़ा. और आज भी सालबेग की याद में ये परंपरा चली आ रही है.
यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)