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डर के साए में आंदोलन को मजबूर अबूझमाड़िया जनजाति: 3 सूत्रीय मांगो को लेकर धरने पर बैठे अबूझमाड़ के सैकड़ों ग्रामीण

RAIPUR TIMES अमित चौहान रायपुर: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में 3 जगहों पर करीबन 24 गांव के हजारो ग्रामीण अपनी मांगो को लेकर पिछले 18 दिनों से घनघोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र तोयामेटा,ईरकभट्टी,ब्रहबेड़ा के घने जंगलों में 4 नवंबर से पारंपरिक वेश-भूषा और हथियार के साथ पेशा कानून वन संरक्षण अधिनियम 2022 और नवीन पुलिस कैंप खोले जाने के विरोध में धरना दे रहे है ।ग्रामीणों का कहना है, कि नवीन पेशा कानून में किए गए संशोधन वन संरक्षण अधिनियम 2022 के नियम और नवीन पुलिस कैंप के खुलने से हमारी आजादी हमसे छीन जाएगी। हम खुलकर अपने जंगलों में घूम नही सकते और न ही प्राकृतिक संसाधनों का अपने जीवन-यापन के लिए लाभ भी नहीं उठा पाएंगे। साथ ही ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस निर्दोष आदिवासियों को फर्जी नक्सली बताकर जेल में भेज देती है।

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इस वजह से आज की तारीख में हजारों बेगुनाह आदिवासी भाई-बहन जेल में बंद हैं। इसके अलावा पुलिस कैंप निर्माण करने के लिए वे बिना ग्रामसभा की अनुमति लिए बगैर अपनी मर्जी से जमीन का अधिग्रहण कर लेते हैं, इससे हमारे रहने के क्षेत्र व खेती-किसानी की जमीनें छीन ली जाती है. ग्रामीणों का कहना है संविधान के नियमों का उल्लंघन करते हुए 5वीं अनुसूची का पालन नहीं किया जा रहा है। जिससे आक्रोशित आदिवासियों का नारा है “ न लोकसभा, न राज्यसभा, सबसे बड़ा ग्रामसभा”। आखिर इस नारे के पीछे का मकसद क्या है!

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ग्रामीणों का कहना है कि 1996 में बने पेसा कानून में संशोधन करके बनाए गए पेसा कानून, वन संरक्षण अधिनियम 2022 के नियम और अबूझमाड़ इलाके में खोले जा रहे पुलिस कैंप से अबूझमाड़ की जनता को सिर्फ नुकसान ही नुकसान है, इसलिए हम सभी ग्रामीण विरोध कर रहे हैं। पुलिस कैंप को हटाना है, ग्रामसभा को लाना है, पुलिस को भगाना है, जैसे जमकर नारे लगाकर अबूझमाड़ की वादियों में आदिवासियों ने अपनी हुंकार भरी है। वहीं ग्रामीणों ने बताया कि ग्रामीण अपना आवेदन लेकर जिला मुख्यालय गए थे लेकिन वहां उनका आवेदन लेने वाला कोई नहीं मिला। अभी भी अबूझमाड़ के आदिवासियों को अपनी मांगों के सुने जाने का इंतजार है लेकिन शासन-प्रसासन उनकी सुध नहीं ले रहा है। आंदोलनकारियों ने आक्रोशित होकर कहा कि अगर समय रहते हमारी बातें नहीं सुनी गई तो हम भूमकाल जैसे आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

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