Sawan 2022 Gopeshwar Mahadev मथुरा। मथुरा और वृंदावन कृष्ण की लीलास्थली के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहां भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों संग मिलकर तमाम लीलाएं की हैं। भगवान कृष्ण की लीला का आनंद लेने एक बार भोलेनाथ भी कृष्ण नगरी गोपी का रूप रखकर पहुंचे थे। महादेव के उस रूप को गोपेश्वर महादेव कहा गया। उस रूप में उनका एक मंदिर आज भी वृंदावन में स्थित है।
मथुरा और वृंदावन नाम आते ही हर किसी के मन में श्रीकृष्ण की भक्ति छा जाती है। मगर क्या आप जानते हैं कि यहां पर भगवान शिव का भी मंदिर स्थापित है? जी हां वृंदावन में ‘गोपेश्वर महादेव’ नाम का मंदिर है। कहा जाता है कि यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां महादेव जी गोपी के रूप में वास करते हैं। तो चलिए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी रोचक तथ्य…
Sawan 2022 गोपेश्वर महादेव Gopeshwar Mahadevविश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां महादेव गोपी रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में भगवान शिव का गोपियों की तरह सोलह श्रंगार कर पूजन किया जाता है। गोपेश्वर महादेव के दर्शन व सोलह श्रृंगार देखने के लिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। पर जानिए भोलेनाथ के गोपेश्वर महादेव रूप की कथा के बारे में।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कान्हा नें वसंत के बाद इस माह में भी रासलीला की थी. कहते हैं कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे देवी-देवता भी मोहित हो जाते थे. शिव जी पौरुष का प्रतीक माने जाते हैं लेकिन क्या थी वो वजह जब भोलेनाथ को धारण करना पड़ा गोपी का रूप. आइए जानते हैं कैसे पड़ा भोलेनाथ का नाम गोपेश्वर.
शिव जी ने क्यों धरा गोपी का रूप
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक द्वापर युग में भगवान कृष्ण गोपियों के साथ रासलीला कर रहे थे. वहीं कैलाश पर्वत पर महादेव शंकर ध्यानमग्न थे, तभी श्रीकृष्ण की बांसुरी की मीठी धुन से उनका ध्यान भटक गया. बांसुरी की धुन सुनकर शिवजी को असीम आनंद प्राप्त हुआ. भोलेनाथ से रहा नहीं गया और वो इस रास का आनंद लेने के लिए वृंदावन की ओर चल पड़े.
रासलीला में जाने के लिए उत्सुक थे महादेव
रासलीला में भगवान कृष्ण के अलावा किसी और पुरुष का आना वर्जित था. इसी के चलते देवी यमुना ने शिव को जाने से रोक दिया. महादेव रास में जाने के लिए अति उत्सुक थे उन्होंने देवी यमुना से ही रासलीला में शामिल होने का उपाय पूछा. यमुना के कहे अनुसार शिव जी गोरी का रूप धारण कर लिया और पहुंच गए वृन्दावन.
ऐसे वृंदावन में विराजमान हुए गोपेश्वर महादेव Gopeshwar Mahadev
श्रीकृष्ण की बांसुरी की तान पर महादेव घूंघट लेकर नृत्य में शामिल हो गए.वह इतने मस्त होकर नृत्य कर रहे थे कि सारी सुधबुध खो बैठे. श्रीकृष्ण ने भोलेनाथ को पहचान लिया था उन्होंने मुस्कुराते हुए महादेव को गोपेश्वर नाम से पुकारा. महारास खत्म होने पर कृष्ण ने भोलेनाथ को ब्रज में इसी रूप में विराजमान होने का आग्रह किया तब से ही शिव जी गोपी के रूप में वृंदावन में निवास करते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार गोपेश्वर महादेव की सबसे पहले राधा-कृष्ण ने पूजा की थी. मान्यता है कि पूजा के दौरान उनके उंगलियों के निशान शिवलिंग पर बन गए थे.
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