RAIPUR TIMES सुष्मिता (विश्व थैलेसीमिया दिवस 8 मई विशेष ) थैलेसीमिया (Thalassemia Day)रक्त संबंधी बीमारी है जो कि अनुवांशिक है। इस बीमारी में खून की बहुत कमी होने लगती है। खून की कमी से मरीज के शरीर में हिमोग्लोबिन नहीं बन पाता है इसलिए उन्हें बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। अतः इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 8 मई को “विश्व थैलेसीमिया दिवस” मनाया जाता है।
इस वर्ष ‘वी अवेयर शेयर एंड केयर’ थीम पर थैलेसीमिया दिवस मनाया जाएगा। इस दिन जिला स्तर पर विभिन्न प्रेरक कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को थैलेसीमिया के कारण, लक्षण तथा इससे बचाव से संबंधित उपायों की जानकारी दी जाएगी। इस संबंध में प्रोफेसर एवं एचओडी पैथोलॉजी डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज रायपुर के डॉ. अरविंद नेरल ने बताया “थैलेसीमिया अनुवांशिक बीमारी है, जिसमें रक्त में पाए जाने वाले हिमोग्लोबीन का निर्माण नहीं होता है, जिससे खून की कमीं या एनीमिया हो जाता है। थैलेसीमिया अल्फा और बीटा थैलेसीमिया दो तरह के थैलेसीमिया हो सकते हैं। यदि दोनों पालकों ( माता एवं पिता) से बीमारग्रस्त जीन्स बच्चे में आते हैं तो वह मेजर थैलेसीमिया कहलाता है , जिसमें बीमारी के गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं। यदि किसी एक ही पालक से बीमारी अनुवांशिक रूप से बच्चे में आती है तो वह माइनर कहलाता है। जिसमें बीमारी के लक्षण लगभग नहीं होते हैं, लेकिन ये लोग बीमारी के वाहक ( केरियर) होते हैं।“
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आगे उन्होंने बतायाः “भारतीय विभिन्न समुदायों में थैलेसीमिया के वाहक लगभग 2 से 6 प्रतिशत लोगों में पाए जाए हैं। एक अनुमानानुसार प्रतिवर्ष 6,000 से 8,000 थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चे जन्म लेते हैं। भारत में 1 से सवा लाख थैलेसीमिया के मरीज हैं। जागरूकता से ही इस बीमारी के जोखिम को कम किया जा सकता है। 3 से 4 माह के नवजात शिशु में इसके लक्षण दिखाई देना प्रारंभ हो जाता है। खून की कमीं, पीलिया के कारण शरीर का लालिमा कम होना, शरीर सफेद-पीला दिखाई देना, शारीरिक और मानसिक विकास रूक जाना, बच्चे के जबड़े और गाल असामान्य हो गए हैं, वह अपनी उम्र से काफी छोटा नजर आने लगे, चेहरा सूखा हुआ रहे, वजन न बढ़े, हमेशा कमजोर और बीमार रहे, सांस लेने में तकलीफ हो तो तुरंत विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। ये लक्षण थैलेसीमिया के भी हो सकते हैं।“
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खून की जांच से बीमारी का इलाज संभव- डॉ. नेरल के अनुसार खून की जांच से इस बीमारी का इलाज, निदान संभव है। सामान्य जांच से खून की कमीं, एनीमिया के प्रकार, रेटिकुलोसाईट की संख्या, पीलीया की जांच के अलावा हिमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरोसिस आदि जांच से थैलेसीमिया का पहचान कर निदान किया जा सकता है। ऐसे मरीजों को 3 से 5 हफ्ते में खून देना होता है और शरीर में आयरन की मात्रा को संतुलित करने के लिए दवाईयां देनी पड़ती हैं। बोनमेरो ट्रांसप्लांट और जीन थेरेपी से इस बीमारी का इलाज हो सकता है।
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इन बातों का रखें ध्यान- थैलेसीमिया से बचाव के लिए जरूरी है रक्त अल्पता या एनीमिया पर नजर रखना। विशेषकर गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच भी अवश्य ही करानी चाहिए, क्योंकि हीमोग्लोबिन का स्तर अनियंत्रित होना थैलेसीमिया बीमारी का एक कारण हो सकता है। यदि फैमिली हिस्ट्री इस बीमारी की किसी समुदाय में मिलती है तो आने वाली पीढ़ी को यह बीमारी ना हो इसलिए शादी के समय रक्त की जांच (थैलेसीमिया की जांच) विवाह पूर्व काउंसिलिंग, करानी भी जरूरी होती है।