Rath Yatra Raipur 2023 राजधानी रायपुर के 10 से अधिक जगन्नाथ मंदिरों में रथयात्रा का आयोजन किया जाता है इनमें से दो ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर हैं, जिनका निर्माण 200 से लेकर 500 साल पहले किया गया था। तीसरा मंदिर 22 साल पहले बना था, लेकिन इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं, कारण कि यहां निभाई जाने वाली परंपरा में प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल शामिल होते हैं। रथयात्रा रवाना करने से पहले स्वर्ण सोने से निर्मित झाड़ू से बुहारने की रस्म निभाई जाती है।
पुरानी बस्ती में टुरी हटरी का ऐतिहासिक मंदिर Rath Yatra Raipur 2023
राजधानी का सबसे पुराना जगन्नाथ मंदिर पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में हैं। मठ के महंत रामसुंदरदास बताते हैं कि यह लगभग 500 साल पुराना मंदिर है।इन दिनों भगवान अस्वस्थ हैं और काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जा रही है। किसी मंदिर में पंचमी, कहीं नवमीं और कहीं एकादशी तिथि पर काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाएगी। भगवान को रथयात्रा पर विराजित करके गुंडिचा मंदिर ले जाने की परंपरा निभाएंगे। भगवान 10 दिनों तक अपनी मौसी के घर विश्राम करेंगे। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान को वापस रथ पर विराजित करके मंदिर लाकर प्रतिष्ठापित किया जाएगा। इसे बहुड़ा रथयात्रा कहते हैं।
कई पीढ़ियों से सेवा कर रहा पुजारी परिवार
Rath Yatra Raipur 2023 दूसरा प्रसिद्ध मंदिर सदरबाजार इलाके में हैं, जो कि 200 साल से अधिक पुराना है। यहां एक ही परिवार के लोग कई पीढ़ियों से भगवान की सेवा कर रहे हैं। परिवार की युवा पीढ़ी के अनेक सदस्य मुंबई, दिल्ली में बस चुके हैं, लेकिन वे भी जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान अवश्य आते हैं। कहा जाता है कि कांकेर राजघराने के राजा प्रवीण भंजदेव ने मंदिर को 123 एकड़ जमीन दान में दी। यह जमीन भानुप्रतापपुर के बारादेवरी गांव में है।
12 साल में नया रथ
पुरी धाम में जिस तरह प्रत्येक 12 साल बाद भगवान के श्रीविग्रह को बदलने की परंपरा निभाई जाती है, वैसे ही सदरबाजार के मंदिर में 12 साल पश्चात रथ का निर्माण किया जाता है। श्रीविग्रह को नहीं बदला जाता, केवल रथ का पुनर्निर्माण किया जाता है।
पुरी के समीप गांव से श्रृंगार सामग्री Rath Yatra Raipur 2023
पुरी मंदिर के समीप स्थित पिपली गांव से भगवान के श्रीविग्रह का श्रृंगार करने के लिए पोशाक एवं अन्य सामग्री मंगवाई जाती है। रथयात्रा से पहले मंदिर के पुजारी यह सामग्री लेकर आते हैं।
स्वर्ण निर्मित झाड़ू से बुहारने की रस्म निभाते हैं प्रदेश के मुखिया
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दौरान गायत्री नगर में जगन्नाथ मंदिर की आधारशिला रखी गई थी। 2003 में मंदिर का निर्माण पूरा। रथयात्रा से पूर्व राज्यपाल, मुख्यमंत्री पूजा करके प्रतिमाओं को सिर पर विराजित करके रथ तक लेकर आते हैं। यात्रा से पूर्व रथ के आगे स्वर्ण से निर्मित झाड़ू से मार्ग को बुहारने की रस्म निभाई जाती है। इसे छेरा-पहरा यानी रथ के आगे सोने से बनी झाड़ू से बुहारने की रस्म कहा जाता है।