
धर्म RAIPUR TIMES | Sawan 2022: दिन में दो बार समुद्र में समा जाता है महादेव का यह मंदिर, कार्तिकेय ने बनवाया था शिवालय
स्तंभेश्वर मंदिर 150 साल पुराना है। जो अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा है। ज्वार के समय शिवलिंग जलमग्न होता है।
Sawan 2022: भगवान शिवजी के कई मंदिरों के दर्शन आपने किए होंगे। आज हम आपको शंकर के ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे। जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे। गुजरात में भोलेनाथ का एक ऐसा मंदिर है। जिसका अभिषेक समुद्र देवता करते हैं। यह मंदिर वडोदरा से 85 किलोमीटर दूर स्थित जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गांव में स्थित है। स्तंभेश्वर नाम का यह मंदिर दिन में दो बार समुद्र में समा जाता है।
वह कुछ देर के बाद दिखाई देने लगता है। ऐसा ज्वार भाटा के कारण होता है। इसके चलके भक्त शिवलिंग के दर्शन तभी कर पाते हैं, जब समुद्र में ज्वार कम होता है। ज्वार के समय मंदिर पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है।
अरब सागर के कैम्बे तट पर मंदिर
स्तंभेश्वर मंदिर अरब सागर के कैम्बे तट पर स्थित है। मंदिर की खोज 150 साल पहले हुई। स्तंभेश्वर मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार 4 फुट ऊंचा और 2 फुट के व्यास है। प्राचीन मंदिर के पीछे अरब सागर का अद्भुत नजारा दिखाई देता है। यहां आने वाले भक्तों को पर्चे बांटे जाते हैं। जिसमें ज्वार भाटा आने का समय लिखा होता है। ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी न हो।
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स्तंभेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा
शिवपुराण के अनुसार ताड़कासुर असुर ने भगवान शिवजी को तपस्या से प्रसन्न कर लिया था। जब महादेव उसके सामने प्रकट हुए तो उसने वरदान मांगा कि उसे 6 दिन की आयु का शंकर का पुत्र की मार सकें। भोलेनाथ ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने आंतक मचाना शुरू कर दिया।
देवताओं और ऋषि मुनि मदद मांगने शिवजी के पास गए। शिव-शक्ति से श्वेत पर्वत के कुंड में उत्पन्न हुए कार्तिकेय के छह मस्तिष्क, चार आंख और बारह हाथ थे। महादेव पुत्र कार्तिकेय ने 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया था।
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कार्तिकेय को जब पता चला कि ताड़कासुर शिवजी का भक्त था। वे काफी व्यथित हो गए। भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को वधस्थल पर शिवालय बनाने को कहा। कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की। जिसे अब स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयं शिवशंभु विराजते हैं। इसलिए समुद्र देवता उनका जलाभिषेक करते हैं।
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